बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद से शुरू हुआ हिंसा का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। मयमनसिंह में दीपू चंद्र दास की नृशंस हत्या के घाव अभी भरे भी नहीं थे कि राजबाड़ी जिले से एक और हिंदू युवक, अमृत मंडल उर्फ सम्राट, की मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा हत्या) की खबर ने देश के अल्पसंख्यकों के बीच असुरक्षा की भावना को और गहरा कर दिया है।
अमृत मंडल हत्याकांड: जबरन वसूली का आरोप और भीड़ की हिंसा
राजबाड़ी जिले के पांग्शा मॉडल पुलिस स्टेशन के अनुसार, 29 वर्षीय अमृत मंडल पर स्थानीय निवासियों ने जबरन वसूली का आरोप लगाया था। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक, अमृत का नाम एक स्थानीय गिरोह 'सम्राट वाहिनी' के नेता के रूप में दर्ज था। हालांकि, किसी भी आरोप के बावजूद कानून को हाथ में लेना और भीड़ द्वारा पीट-पीटकर जान ले लेना बांग्लादेश की चरमराती कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाता है। यह घटना दर्शाती है कि समाज में असंतोष किस कदर हिंसक रूप ले चुका है, जहाँ कानूनी प्रक्रिया के बजाय 'ऑन-द-स्पॉट जस्टिस' को प्राथमिकता दी जा रही है।
हिंदुओं के घरों पर लक्षित हमले और आगजनी
सिर्फ हत्याएं ही नहीं, बल्कि संपत्तियों को निशाना बनाना भी जारी है। चटगांव के पास राउजान इलाके में सांप्रदायिक हिंसा का भयावह रूप देखने को मिला:
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आगजनी की घटनाएं: पिछले 5 दिनों के भीतर सात हिंदू परिवारों के घरों को आग के हवाले कर दिया गया।
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दहशत का माहौल: मंगलवार को एक और हिंदू परिवार का घर जलाए जाने के बाद पूरे इलाके में हिंदू समुदाय दहशत में है।
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पुलिस की कार्रवाई: पुलिस ने अब तक इस मामले में पांच संदिग्धों को गिरफ्तार किया है, लेकिन बार-बार हो रही ये घटनाएं प्रशासन की सतर्कता पर सवालिया निशान लगाती हैं।
दीपू चंद्र दास मामला और सरकार की प्रतिक्रिया
पिछले हफ्ते मयमनसिंह में दीपू चंद्र दास की हत्या ईशनिंदा के झूठे या अनौपचारिक आरोपों के बाद कर दी गई थी। भीड़ ने न केवल उसे मारा, बल्कि उसके शव के साथ बर्बरता भी की। इस घटना के बाद देश-दुनिया में तीखी प्रतिक्रिया हुई। मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने मृतक के परिवार की जिम्मेदारी उठाने का वादा किया है और पुलिस ने 12 आरोपियों को जेल भेजा है। हालांकि, अल्पसंख्यकों का मानना है कि केवल मुआवजे या कुछ गिरफ्तारियों से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकती।
2025: बांग्लादेश के लिए हिंसा का साल
मानवाधिकार संगठन 'ऐन ओ सलीश केंद्र' की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2025 में अब तक बांग्लादेश में हिंसा की विभिन्न घटनाओं में 184 लोगों की मौत हो चुकी है।
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इंकलाब मंच के नेता की मौत: शरीफ उस्मान हादी की मौत के बाद भड़की हिंसा ने सांस्कृतिक और मीडिया संस्थानों को भी नहीं बख्शा।
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मीडिया पर हमले: 'डेली स्टार' और 'प्रथम आलो' जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के दफ्तरों में आगजनी की गई।
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सांस्कृतिक संगठनों पर प्रहार: छायानट और उदिची शिल्पी गोष्ठी जैसे दशकों पुराने संगठनों के कार्यालयों को जलाना यह दर्शाता है कि यह हिंसा अब केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान को मिटाने की ओर भी मुड़ रही है।
निष्कर्ष
मोहम्मद यूनुस के कार्यालय ने बयान जारी कर कहा है कि अफवाहों के आधार पर हिंसा को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि हिंदू समुदाय और अन्य अल्पसंख्यक समूहों के खिलाफ हिंसा एक खतरनाक पैटर्न बन गई है। जब तक प्रशासन ईशनिंदा या निजी रंजिश के नाम पर भीड़ द्वारा किए जा रहे 'न्याय' पर कठोरता से रोक नहीं लगाता, तब तक बांग्लादेश में शांति और लोकतंत्र की बहाली एक अधूरा सपना ही रहेगी।