रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी (MPC) ने शुक्रवार को बड़ा फैसला लेते हुए रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट (bps) की कटौती कर दी है। इस ऐलान के बाद रेपो रेट 5.50% से घटकर 5.25% पर पहुंच गई है। RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने पॉलिसी रिव्यू का विवरण जारी करते हुए कहा कि मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों और लगातार कम होती मुद्रास्फीति को देखते हुए दरों में कटौती जरूरी हो गई थी। रेपो रेट कम होने का सीधा प्रभाव कर्ज लेने वालों पर पड़ेगा, क्योंकि इससे बैंकिंग सिस्टम में लोन की ब्याज दरें घटेंगी और EMI में कमी आएगी।
इससे पहले 1 अक्टूबर को हुई बैठक में रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया था और रेपो रेट को स्थिर 5.50% पर बनाए रखा था। लेकिन महंगाई में स्पष्ट गिरावट और विकास के स्थिर संकेतों के चलते इस बार पॉलिसी में ढील दी गई। RBI को उम्मीद है कि इससे बाजार में खपत और निवेश बढ़ेगा, जो आने वाले महीनों में आर्थिक रफ्तार को मजबूत करेगा।
गोल्डीलॉक्स जोन में प्रवेश की तैयारी
गवर्नर संजय मल्होत्रा ने अपने संबोधन में कहा कि अक्टूबर 2025 से महंगाई में लगातार नरमी आई है और यही भारतीय अर्थव्यवस्था को एक दुर्लभ गोल्डीलॉक्स जोन में पहुंचाने का संकेत देती है। उन्होंने कहा, "ग्रोथ मजबूत बनी हुई है और मुद्रास्फीति नियंत्रण में है, जिससे संतुलित आर्थिक परिदृश्य बन रहा है।"
गोल्डीलॉक्स जोन क्या होता है?
अर्थशास्त्र में गोल्डीलॉक्स उस आदर्श स्थिति को कहा जाता है जब अर्थव्यवस्था न तो ज्यादा गर्म यानी महंगाई की मार झेल रही हो और न ही ठंडी, यानी विकास दर कमजोर हो। आर्थिक संतुलन, नियंत्रित महंगाई और स्थिर विकास इस चरण की सबसे बड़ी पहचान हैं। ठीक उसी तरह जैसे कहानी ‘गोल्डीलॉक्स एंड द थ्री बेयर्स’ में तीसरा दलिया न ज्यादा गर्म होता है और न बहुत ठंडा, बल्कि बिल्कुल संतुलित। भारत इस समय इसी बीच के सुरक्षित जोन में है—न विकास धीमा, न महंगाई बेकाबू। यही कारण है कि RBI अब धीरे-धीरे ब्याज दरों में राहत देकर मार्केट को अतिरिक्त आर्थिक ऊर्जा देना चाहता है ताकि निवेश, मांग और उत्पादन की गति कायम रहे।
इस साल कितनी घट चुकी है ब्याज दर
फरवरी से जून 2025 के बीच RBI कुल 100 bps की कटौती कर चुका था। तब रेपो रेट 6.50% से घटकर 5.50% पर आ गई थी। अगस्त और अक्टूबर की बैठकों में दरों को स्थिर रखा गया। अब दिसंबर की समीक्षा में फिर से 25 bps की कटौती दर्ज की गई, जिससे स्पष्ट है कि RBI महंगाई को नियंत्रण में मानते हुए विकास को प्रोत्साहन देने की राह पर है।
रेपो रेट कम होने के फायदे
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EMI में राहत: होम, ऑटो और पर्सनल लोन की मासिक किस्तों में कमी आएगी
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लोन महंगे नहीं होंगे: ब्याज दरें घटने से नए लोन लेने वालों को कम मूल्य पर कर्ज मिलेगा
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मार्केट में खपत बढ़ेगी: EMI घटने से आम आदमी की जेब में अतिरिक्त पैसा बचेगा
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हाउसिंग और ऑटो सेक्टर को बढ़ावा: कम ब्याज दरें इन दोनों सेक्टर्स की मांग को तेज करेंगी
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इंवेस्टमेंट और कैपिटल फ्लो में वृद्धि: कंपनियों को सस्ते कर्ज मिलने से उत्पादन क्षमता और निवेश बढ़ेगा
रेपो रेट क्या है और कैसे असर डालती है?
रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर RBI देश के वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक कर्ज उपलब्ध कराता है। जब यह दर बढ़ाई जाती है तो बैंकों के लिए RBI से कर्ज लेना महंगा हो जाता है और वही ब्याज भार आगे आम उपभोक्ताओं तक ट्रांसफर होता है। नतीजतन होम लोन, कार लोन और अन्य कर्ज महंगे हो जाते हैं। इसके विपरीत जब रेपो रेट घटती है तो बैंक कम ब्याज पर RBI से कर्ज लेते हैं और इसे कम दरों पर ग्राहकों को देते हैं। इससे बाजार में नकदी बढ़ती है, मांग मजबूत होती है और आर्थिक गतिविधियां तेज होती हैं।