देश की राजधानी दिल्ली समेत कई राज्य गंभीर प्रदूषण की मार झेल रहे हैं, और खराब हवा की गुणवत्ता को लेकर वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति पर अक्सर सवाल उठते रहे हैं. इस बीच, केंद्र सरकार ने गुरुवार को संसद को बताया कि विभिन्न संगठनों द्वारा जारी की जाने वाली ग्लोबल एयर क्वालिटी रैंकिंग किसी भी आधिकारिक संस्था द्वारा तैयार नहीं की जाती है. साथ ही, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के हवा की गुणवत्ता से जुड़े दिशानिर्देश केवल सलाह के रूप में काम करते हैं और ये बाध्यकारी मानक नहीं होते हैं.
राज्यसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए, पर्यावरण मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि विश्व स्तर पर आधिकारिक तौर पर कोई भी प्रदूषण रैंकिंग तैयार नहीं की जाती है. यह सवाल विशेष रूप से IQAir की वर्ल्ड एयर क्वालिटी रैंकिंग, WHO की ग्लोबल एयर क्वालिटी डेटाबेस, एनवायरमेंट परफॉरमेंस इंडेक्स (EPI) और ग्लोबल बरडन ऑफ डिसीज (GBD) जैसे वैश्विक AQI सूचकांकों में भारत की स्थिति के बारे में पूछा गया था.
देश का अपना एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड: कीर्ति वर्धन
केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने इस मुद्दे पर सरकार का रुख स्पष्ट किया. उन्होंने कहा कि डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों का उद्देश्य भूगोल, पर्यावरणीय स्थितियों, पृष्ठभूमि स्तर और राष्ट्रीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए देशों को अपने मानक तय करने में मदद करना है.
मंत्री ने आगे बताया कि भारत ने पहले ही सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय गुणवत्ता की रक्षा के लिए 12 प्रदूषकों के लिए अपने नेशनल एंबीयेंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड (NAAQS) को अधिसूचित कर दिया है. ये मानक देश की विशिष्ट आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुरूप हैं.
हर साल होता है स्वच्छ वायु सर्वेक्षण
केंद्रीय मंत्री ने एक बार फिर दोहराया कि दुनिया में कोई भी वैश्विक प्राधिकरण आधिकारिक तौर पर देशों की रैंकिंग जारी नहीं करता है.
हालांकि, उन्होंने यह भी जानकारी दी कि भारत में वायु गुणवत्ता सुधार उपायों के आधार पर शहरों का आकलन किया जाता है. इसके लिए नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) के तहत शामिल 130 शहरों का आकलन और रैंकिंग करने के लिए हर साल 'स्वच्छ वायु सर्वेक्षण' आयोजित किया जाता है. यह सर्वेक्षण भारत के भीतर वायु गुणवत्ता प्रबंधन में सुधार के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करता है.
केंद्र सरकार का यह बयान उन वैश्विक रिपोर्टों को लेकर भारत के रुख को स्पष्ट करता है जो अक्सर देश के बड़े शहरों में खराब वायु गुणवत्ता की स्थिति पर चिंता जताती हैं. सरकार का जोर इस बात पर है कि वैश्विक रैंकिंग गैर-बाध्यकारी सलाह पर आधारित हैं, जबकि भारत अपने नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए अपने स्वयं के अधिसूचित मानकों और आंतरिक मूल्यांकन (जैसे स्वच्छ वायु सर्वेक्षण) का पालन करता है.