राजस्थान की राजनीति में बारां जिले की अंता विधानसभा सीट पर हाल ही में हुए उपचुनाव ने बड़ा असर छोड़ा है। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को करारी हार का सामना करना पड़ा, जिसके बाद प्रदेश की भजनलाल शर्मा सरकार सक्रिय मोड में दिखाई दे रही है। सरकार ने हार से मिले संकेतों को गंभीरता से लेते हुए जनता और कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद बढ़ाने का फैसला किया है। इसी कड़ी में सरकार ने घोषणा की है कि अब जयपुर में स्थित पार्टी के प्रदेश कार्यालय में मंत्री नियमित रूप से जनसुनवाई करेंगे।
1 दिसंबर से शुरू होगा जनसुनवाई कार्यक्रम
सरकार की ओर से जारी जानकारी के मुताबिक, 1 दिसंबर से जनसुनवाई कार्यक्रम की शुरुआत होगी। इस पहल के तहत हर सोमवार से बुधवार तक रोजाना दो-दो मंत्री कार्यालय में मौजूद रहेंगे। उनके साथ पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी भी बैठेंगे, ताकि समस्याओं को मौके पर ही सुना और प्राथमिकता के आधार पर निपटाया जा सके। इसके जरिए सरकार का उद्देश्य न केवल जनता और संगठन के बीच की दूरी कम करना है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि जनता की शिकायतें समय पर अधिकारियों तक पहुंचे और उनका समाधान हो सके।
हार से मिले संदेश के बाद सक्रिय हुई सरकार
अंता में मिली हार को राजनीतिक विश्लेषक जनता का एक बड़ा संदेश मान रहे हैं। यह माना जा रहा है कि स्थानीय मुद्दों, क्षेत्रीय असंतोष और कार्यकर्ताओं की नाराजगी ने उपचुनाव में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ाई थीं। हार के बाद सरकार और संगठन अब यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि किसी भी स्तर पर संवादहीनता की स्थिति न बने। इसी को ध्यान में रखते हुए मंत्रियों को पार्टी कार्यालय में बैठकर आम लोगों, कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं की शिकायतें प्रत्यक्ष रूप में सुनने का जिम्मा दिया गया है। इस कदम को पार्टी के भीतर भी सुधार प्रक्रिया के रूप में देखा जा रहा है।
जनता की समस्याओं का होगा त्वरित समाधान
सरकार का मानना है कि जनसुनवाई के माध्यम से लोगों की समस्याओं को सीधे मंत्रियों तक पहुंचने का मौका मिलेगा। इसमें बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, राजस्व संबंधी विवाद, आवास योजनाएँ, पेंशन, सड़क और विभागीय लापरवाही जैसे मुद्दों को प्राथमिकता से सुना जाएगा। मंत्रियों के साथ मौजूद पदाधिकारी तुरंत संबंधित विभागों से संपर्क कर त्वरित समाधान की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं। इससे न केवल शिकायतों के निस्तारण की गति बढ़ेगी, बल्कि सरकार की छवि में भी सुधार हो सकता है।
पहले भी हुई थी ऐसी पहल, लेकिन असफल रही
दिलचस्प बात यह है कि जनसुनवाई की ऐसी पहल पहले भी की गई थी। पिछले प्रयास को अच्छा प्रतिसाद मिलने की उम्मीद थी, लेकिन सिर्फ चार दिनों में ही कार्यक्रम बंद करना पड़ा, क्योंकि संगठनात्मक व्यवस्था मजबूत नहीं थी और शिकायतों के निस्तारण में देरी होने लगी थी। इस बार सरकार ने दावे के साथ कहा है कि पिछली गलतियों से सबक लेते हुए व्यवस्था को और मजबूत बनाया गया है। मंत्रियों की मौजूदगी के साथ पार्टी पदाधिकारियों और संबंधित विभागों की टीम भी सक्रिय रहेगी, ताकि शिकायतें लंबित न रहें।