नए साल की शुरुआत से पहले भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक चिंताजनक रिपोर्ट सामने आई है। आर्थिक शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) ने चेतावनी दी है कि साल 2026 भारत के निर्यात (Export) क्षेत्र के लिए अब तक का सबसे कठिन समय साबित हो सकता है। वैश्विक स्तर पर बढ़ते संरक्षणवाद और प्रमुख देशों के साथ व्यापारिक तनाव के कारण भारत का एक ट्रिलियन डॉलर ($1 Trillion) के निर्यात का महत्वाकांक्षी लक्ष्य खतरे में पड़ता दिख रहा है।
टारगेट से पीछे रहेगा भारत
GTRI की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2025-26 में भारत का कुल वस्तु और सेवा निर्यात केवल 3 प्रतिशत की दर से बढ़कर लगभग 850 अरब डॉलर तक ही पहुंच पाएगा।
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माल (Goods) निर्यात: इसमें सुस्ती रहने की संभावना है क्योंकि वैश्विक मांग कमजोर है।
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सेवा (Services) निर्यात: इसके 400 अरब डॉलर के आंकड़े को पार करने की उम्मीद है।
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2024-25 का प्रदर्शन: पिछले वित्त वर्ष में कुल निर्यात 825 अरब डॉलर था (438 अरब डॉलर वस्तुएं और 387 अरब डॉलर सेवाएं)।
इस सुस्त रफ्तार का मतलब है कि भारत अपने निर्धारित लक्ष्य से करीब 150 अरब डॉलर पीछे रह सकता है।
वैश्विक चुनौतियां और अमेरिकी टैरिफ का दबाव
भारत के लिए सबसे बड़ी मुश्किल अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) जैसे बड़े व्यापारिक साझेदारों के साथ बढ़ता तनाव है।
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अमेरिका का सख्त रुख: अमेरिका ने भारतीय सामानों पर 50 फीसदी तक का टैरिफ लगाने की बात कही है। आंकड़ों के मुताबिक, मई से नवंबर के बीच अमेरिका को होने वाले भारतीय निर्यात में 20.7 प्रतिशत की भारी गिरावट दर्ज की गई है।
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यूरोपीय संघ का कार्बन टैक्स: 1 जनवरी, 2026 से यूरोपीय संघ अपनी कार्बन सीमा समायोजन प्रणाली (CBAM) लागू करने जा रहा है। यह प्रभावी रूप से एक 'कार्बन टैक्स' होगा, जिससे भारतीय स्टील, एल्युमीनियम और अन्य उत्पादों का निर्यात महंगा और कठिन हो जाएगा।
संरक्षणवाद और नए व्यापार अवरोध
GTRI के संस्थापक अजय श्रीवास्तव का मानना है कि विकसित देशों ने अब अपनी अर्थव्यवस्थाओं को बचाने के लिए संरक्षणवाद (Protectionism) का रास्ता चुन लिया है। जलवायु परिवर्तन के नाम पर लगाए जा रहे नए व्यापार अवरोध (Trade Barriers) भारतीय कंपनियों के लिए वैश्विक बाजार में टिकना मुश्किल बना रहे हैं। ऐसे माहौल में निर्यात को बढ़ाना तो दूर, मौजूदा स्तर को बनाए रखना भी एक बड़ी चुनौती होगी।
बाजार विविधीकरण: उम्मीद की किरण
हालांकि रिपोर्ट में एक सकारात्मक संकेत भी दिया गया है। भारत ने अब अपनी निर्भरता केवल अमेरिका पर कम करते हुए अन्य बाजारों की ओर रुख करना शुरू कर दिया है। जहाँ अमेरिका को निर्यात घटा है, वहीं दुनिया के बाकी हिस्सों में भारत का निर्यात 5.5 प्रतिशत बढ़ा है। यह 'भौगोलिक विविधीकरण' भविष्य में जोखिम को कम करने में मददगार साबित हो सकता है।
आगे की राह: क्या करना होगा?
विशेषज्ञों का सुझाव है कि भारत को अपनी व्यापार नीति में तुरंत बदलाव करने की जरूरत है:
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मुक्त व्यापार समझौते (FTA): सरकार को अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ लंबित व्यापार समझौतों को जल्द अंतिम रूप देना होगा।
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सेक्टरवार समीक्षा: मौजूदा समझौतों की समीक्षा की जानी चाहिए ताकि यह पता चल सके कि भारतीय कंपनियों को वास्तव में वैश्विक सप्लाई चेन में जगह मिल रही है या नहीं।
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लागत में कमी: घरेलू स्तर पर लॉजिस्टिक्स और उत्पादन लागत को कम करना होगा ताकि भारतीय उत्पाद वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी बने रह सकें।
निष्कर्ष: 2026 की यह चेतावनी भारत के लिए एक 'वेक-अप कॉल' है। यदि समय रहते बड़े व्यापारिक समझौते और नीतिगत सुधार नहीं किए गए, तो वैश्विक व्यापार की इस बदलती लहर में भारत का एक्सपोर्ट टारगेट महज एक सपना बनकर रह सकता है।