लखनऊ न्यूज डेस्क: भारतीय आयुर्वेद में इस्तेमाल होने वाला पंचवल्कल अब कैंसर के उपचार में भी कारगर साबित हो रहा है। राजकीय आयुर्वेद कॉलेज टूड़ियागंज के पूर्व प्राचार्य प्रो. जेएन मिश्रा और पुणे की आरएसएच कैंसर रिसर्च लैब की डॉ. रुचिका कौल के द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है। इस अध्ययन को अंतरराष्ट्रीय जर्नल ऑफ एथनोफार्माकोलॉजी में प्रकाशित किया गया है। लखनऊ स्थित नवचेतना केंद्र में एक प्रेसवार्ता के दौरान प्रो. मिश्रा ने इस शोध के परिणामों की जानकारी दी।
प्रो. मिश्रा के अनुसार, पंचवल्कल में कैंसर-रोधी और ह्यूमन पेपिलोमा वायरस (एचपीवी) रोधी गुण पाए गए हैं। आयुर्वेद में इसका उपयोग महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं, खासकर गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के इलाज में लंबे समय से किया जाता रहा है। इस अध्ययन को विशेष रूप से इस प्रकार के कैंसर से निपटने के लिए तैयार किया गया था, और इसमें भारत सेवा संस्थान ने आर्थिक सहयोग प्रदान किया। पंचवल्कल में पीपल, पाकड़, गूलर, बरगद और ट्यूलिप पौधों की छाल का अर्क शामिल होता है।
अध्यान के दौरान पाया गया कि पंचवल्कल का अर्क न केवल गर्भाशय ग्रीवा कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट करता है, बल्कि एचपीवी 16 और एचपीवी 18 जैसे कैंसर उत्पन्न करने वाले वायरस की गतिविधि को भी कम करता है। इसके अलावा, इस अर्क के सेवन से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि होती है और इसके इस्तेमाल से कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा। यह न केवल सर्वाइकल कैंसर, बल्कि मुंह के कैंसर के इलाज में भी उपयोगी पाया गया है।
प्रो. मिश्रा ने बताया कि इस अध्ययन को चूहों पर किया गया था, और इसके परिणाम बेहद सकारात्मक रहे। चूहों पर कैंसर का प्रभाव कम हुआ और यह अध्ययन दर्शाता है कि आयुर्वेदिक फार्मूला कीमोथेरेपी की तरह दुष्प्रभाव नहीं डालता। उनका कहना था कि इस अध्ययन के परिणामों को समाज तक पहुंचाने के लिए किसी बड़े संस्थान को इसे आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। साथ ही, उन्होंने महिलाओं को सलाह दी कि जननांग पर मस्से होने पर उसे नजरअंदाज न करें, क्योंकि यह कैंसर का संकेत हो सकते हैं।