पिछले कुछ दिनों से अमेरिका के टैरिफ को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चाएं तेज हो गई हैं। इस बार अमेरिका के टैरिफ का केंद्र बिंदु बना है भारत, जो रूस से सस्ते दामों पर तेल खरीदकर अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर रहा है। अमेरिका का कहना है कि भारत रूस-यूक्रेन युद्ध का “आर्थिक लाभ” उठा रहा है, जबकि भारत इसे अपने राष्ट्रीय हितों के तहत लिया गया एक रणनीतिक निर्णय मानता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनकी प्रशासनिक टीम, जो पहले भी वैश्विक टैरिफ विवादों में आक्रामक रुख दिखा चुकी है, अब फिर से भारत पर दबाव बनाने की कोशिश कर रही है। हाल ही में अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेन्ट ने भारत की आलोचना करते हुए कहा कि भारत रूस से भारी मात्रा में सस्ता कच्चा तेल खरीदकर उसे महंगे दामों पर रीफाइन कर दुनिया के बाजारों में बेच रहा है। उनके अनुसार, भारत ने इस प्रक्रिया से लगभग 16 अरब डॉलर का अतिरिक्त लाभ कमाया है। बेसेन्ट ने इसे "अवसरवादी मध्यस्थता" करार दिया और कहा कि यह स्वीकार नहीं किया जाएगा।
युद्ध से पहले भारत की तेल आपूर्ति में रूस की हिस्सेदारी मात्र 1 प्रतिशत थी, जो अब बढ़कर 42 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है। इससे स्पष्ट होता है कि भारत ने भू-राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए अपने ऊर्जा स्रोतों में बदलाव किया है। भारत की यह रणनीति पूरी तरह से अपनी आंतरिक ऊर्जा जरूरतों और वैश्विक मूल्य अस्थिरता के बीच संतुलन बनाने की कोशिश है।
इस पूरे घटनाक्रम के बीच अमेरिका ने भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी है, जो 27 अगस्त से प्रभाव में आ सकता है। इससे पहले, 7 अगस्त से ही कुछ वस्तुओं पर टैरिफ लागू किया जा चुका है। अगर यह अतिरिक्त शुल्क भी लागू होता है, तो भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों पर इसका सीधा प्रभाव पड़ सकता है। भारत के लिए यह चिंता का विषय हो सकता है क्योंकि दोनों देशों के बीच व्यापार का आकार काफी बड़ा है।
हालांकि, कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, यदि रूस-यूक्रेन के बीच शांति वार्ता सफल होती है, तो भारत पर लगने वाले इस अतिरिक्त टैरिफ को टाला जा सकता है। कहा जा रहा है कि ट्रंप इस दिशा में सक्रिय प्रयास कर रहे हैं और दोनों देशों के नेताओं से मिलकर युद्ध खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं।
इस पूरे विवाद में भारत को बेहद संतुलित और सूझ-बूझ भरा रुख अपनाना होगा। भारत को अपने रणनीतिक हितों की रक्षा करते हुए वैश्विक मंचों पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए कि वह किसी भी युद्ध का समर्थक नहीं है, लेकिन अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए वह स्वतंत्र है।
अमेरिका के इस रवैये से भारत-अमेरिका संबंधों में अस्थायी तनाव जरूर पैदा हो सकता है, लेकिन दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी को इससे ज्यादा प्रभावित नहीं होने देना चाहिए।