श्रीलंका की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। देश के पूर्व राष्ट्रपति और वरिष्ठ नेता रानिल विक्रमसिंघे को भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया है। यह कदम श्रीलंका के भ्रष्टाचार विरोधी आयोग और जांच एजेंसियों द्वारा संयुक्त रूप से उठाया गया है, जिससे पूरे देश में राजनीति और समाज में बहस छिड़ गई है।
कौन हैं रानिल विक्रमसिंघे?
रानिल विक्रमसिंघे श्रीलंका की राजनीति में एक पुराना और जाना-पहचाना नाम हैं। वे छह बार देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं और 2022 में गोटबाया राजपक्षे के इस्तीफे के बाद राष्ट्रपति बनाए गए थे। उन्होंने एक ऐसे समय में सत्ता संभाली थी जब श्रीलंका गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा था। वे यूनाइटेड नेशनल पार्टी (UNP) के नेता हैं और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर श्रीलंका के एक संयमी और बुद्धिमान राजनेता के रूप में जाने जाते रहे हैं।
भ्रष्टाचार के आरोप क्या हैं?
रानिल विक्रमसिंघे पर जो आरोप लगे हैं, वे बेहद गंभीर और व्यापक हैं। जांच एजेंसियों का कहना है कि उनके राष्ट्रपति कार्यकाल और उससे पहले के प्रधानमंत्री कार्यकाल में सरकारी धन के दुरुपयोग, भूमि सौदों में हेराफेरी, कई निजी कंपनियों को अवैध लाभ पहुंचाने, और विदेशी निवेश से संबंधित समझौतों में पारदर्शिता की कमी जैसे आरोप हैं।
सूत्रों के अनुसार, इन मामलों में हजारों करोड़ श्रीलंकाई रुपये का नुकसान हुआ है। इस जांच की शुरुआत जनता की शिकायतों और मीडिया में आए कुछ लीक दस्तावेजों के बाद हुई थी, जिसके बाद भ्रष्टाचार निरोधक आयोग ने मामले की गहराई से जांच की और गिरफ्तारी के लिए पर्याप्त सबूत एकत्र किए।
गिरफ्तारी कैसे हुई?
रानिल विक्रमसिंघे को कोलंबो स्थित उनके निजी आवास से 22 अगस्त 2025 को सुबह के समय गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी के समय भारी पुलिस सुरक्षा तैनात की गई थी ताकि किसी भी तरह की राजनीतिक प्रतिक्रिया या हिंसा को रोका जा सके। उन्हें सीधे कोलंबो उच्च न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं
इस गिरफ्तारी से श्रीलंका की राजनीति में भूचाल आ गया है। विपक्षी दलों ने इस कार्रवाई को सही ठहराया है और कहा है कि “कोई भी कानून से ऊपर नहीं है।” वहीं, रानिल विक्रमसिंघे के समर्थकों और पार्टी नेताओं ने इसे राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित बताया है। उनका कहना है कि यह गिरफ्तारी सरकार द्वारा अपने विरोधियों को दबाने की कोशिश है।
सामान्य जनता में भी मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कई लोग इसे देश में पारदर्शिता और जवाबदेही की ओर एक जरूरी कदम मान रहे हैं, जबकि कुछ इसे श्रीलंका की अस्थिर राजनीति का और एक उदाहरण बता रहे हैं।
आगे क्या होगा?
अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि अदालत में यह मामला किस दिशा में जाएगा। क्या आरोप सिद्ध होंगे या यह सिर्फ एक राजनीतिक दांव है? फिलहाल, यह तय है कि श्रीलंका की राजनीति में आने वाले दिनों में बड़ी उथल-पुथल देखने को मिल सकती है।
निष्कर्ष
रानिल विक्रमसिंघे की गिरफ्तारी केवल एक व्यक्ति पर कार्रवाई नहीं, बल्कि श्रीलंका की राजनीतिक प्रणाली और न्यायिक व्यवस्था की साख और शक्ति की परीक्षा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आगे की कानूनी कार्यवाही क्या रूप लेती है और क्या इससे श्रीलंका की राजनीति में एक नई शुरुआत होगी।