अमेरिका और चीन के बीच लंबे समय से चल रही व्यापारिक खींचतान के बीच एक बड़ी डील को लेकर सहमति बन गई है। अमेरिका के ट्रेजरी सेक्रेटरी स्कॉट बेसेंट ने एक अहम बयान देते हुए जानकारी दी कि अमेरिका और चीन के बीच व्यापार घाटा कम करने को लेकर एक समझौता हो गया है। यह डील अमेरिका के लिए रणनीतिक और आर्थिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि इसका मुख्य उद्देश्य अमेरिका के व्यापार घाटे को कम करना है, जो कि पिछले कई वर्षों से एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है।
स्कॉट बेसेंट ने अपने बयान में कहा कि, "हमने एक ऐसा समझौता किया है जिससे अमेरिका को अपने 1.2 ट्रिलियन डॉलर के व्यापार घाटे को कम करने में मदद मिलेगी।" हालांकि उन्होंने समझौते की विस्तार से जानकारी नहीं दी, लेकिन इतना जरूर स्पष्ट कर दिया कि यह एक दोतरफा समझौता है जिसमें चीन की सहमति से कई आर्थिक पहलुओं पर बात बनी है।
क्या है व्यापार घाटा और अमेरिका की चिंता?
व्यापार घाटा तब होता है जब कोई देश आयात तो अधिक करता है लेकिन निर्यात कम। अमेरिका का व्यापार घाटा पिछले कुछ दशकों से लगातार बढ़ता गया है, खासतौर पर चीन के साथ। चीन से अमेरिका का आयात बहुत अधिक है जबकि निर्यात काफी सीमित है, जिससे अमेरिका को भारी घाटा उठाना पड़ता है।
यह घाटा अमेरिका के लिए सिर्फ आर्थिक ही नहीं बल्कि राजनीतिक मुद्दा भी बन गया है। ट्रंप प्रशासन के दौरान यह मुद्दा और भी उभरकर सामने आया जब उन्होंने चीन पर कठोर टैरिफ लगाए ताकि चीन से आयात कम किया जा सके और अमेरिका में घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिले।
जिनेवा में हुई बैठक का क्या रहा महत्व?
यह बैठक जिनेवा में आयोजित की गई, और यह ट्रंप के दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद चीन के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ पहली आमने-सामने की मुलाकात थी। इस बैठक में चीन के डिप्टी प्रधानमंत्री और दो अन्य उप मंत्री शामिल हुए, जो कि इस डील की गंभीरता और महत्व को दर्शाता है।
बैठक के दौरान टैरिफ कम करने को लेकर कोई विशेष घोषणा नहीं हुई, लेकिन अमेरिकी पक्ष ने साफ किया कि वार्ता सकारात्मक रही और दोनों देशों के बीच एक एग्रीमेंट पर सहमति बनी है।
टैरिफ को लेकर क्या संकेत मिले?
हालांकि टैरिफ कम करने की बात इस बैठक में नहीं हुई, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति ने संकेत दिया है कि चीन पर लगाए गए भारी टैरिफ को 145 प्रतिशत से घटाकर 80 प्रतिशत या उसके आसपास लाया जा सकता है। यह संकेत इस बात की तरफ इशारा करता है कि भविष्य में व्यापार संबंधों में कुछ नरमी देखी जा सकती है।
लेकिन यह भी साफ है कि ट्रंप प्रशासन अभी पूरी तरह से चीन को रियायत देने के मूड में नहीं है। अमेरिका चाहता है कि चीन अपने व्यापारिक रवैये में बदलाव लाए, अपने बाजार को अमेरिकी कंपनियों के लिए अधिक खोलें और अमेरिका से अधिक वस्तुएं खरीदें ताकि व्यापार घाटा कम किया जा सके।
चीन की प्रतिक्रिया और आगे का रास्ता
फिलहाल चीन की तरफ से कोई सार्वजनिक बयान नहीं आया है, लेकिन यह अनुमान लगाया जा रहा है कि चीन इस डील को लेकर सतर्क रवैया अपनाएगा। चीन पहले से ही अमेरिकी टैरिफ में राहत चाहता रहा है और व्यापार को सामान्य स्तर पर लाना उसकी भी प्राथमिकता है।
इस डील के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि दोनों देश आने वाले महीनों में किस तरह से अपने-अपने कदम आगे बढ़ाते हैं। क्या यह डील वास्तव में अमेरिका के व्यापार घाटे को कम कर पाएगी या यह सिर्फ एक अस्थायी समाधान है, यह समय ही बताएगा।
निष्कर्ष
अमेरिका और चीन के बीच हुई यह डील वैश्विक व्यापार के लिए एक अहम मोड़ साबित हो सकती है। यह न सिर्फ दोनों देशों के संबंधों में नई शुरुआत की ओर इशारा करती है बल्कि दुनिया की अन्य अर्थव्यवस्थाओं के लिए भी एक सकारात्मक संकेत है। हालांकि अभी डील की सभी शर्तें और विवरण सामने नहीं आए हैं, फिर भी यह एक सकारात्मक कदम जरूर माना जा सकता है।
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