अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर अपनी विवादास्पद 'अमेरिका फर्स्ट' नीति के तहत अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बड़ा कदम उठाया है। इस बार उनका निशाना बने हैं यूरोप के वे देश जो रूस की सीमा से सटे हुए हैं। राष्ट्रपति ट्रंप ने इन देशों को मिलने वाली अमेरिकी सैन्य सहायता या सिक्योरिटी फंड में कटौती करने का फैसला किया है। यह कटौती चरणबद्ध तरीके से लागू की जाएगी और इसका सीधा असर एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया जैसे देशों पर पड़ेगा।
ट्रंप का कहना है कि अमेरिका अब दुनिया भर में अपने संसाधनों का अंधाधुंध वितरण नहीं करेगा। उनका जोर है कि अमेरिका की प्राथमिकता अब अमेरिकी हित होंगे, न कि वैश्विक दायित्व। उनके अनुसार, यूरोपीय देशों को अब अपनी सुरक्षा के लिए खुद जिम्मेदारी लेनी चाहिए और अमेरिका की मदद पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।
इस फैसले के पीछे एक और बड़ा कारण यह भी माना जा रहा है कि यूरोपीय देश यूक्रेन का खुलकर समर्थन कर रहे हैं। यूक्रेन-रूस युद्ध के बीच यूरोपीय संघ और नाटो देशों ने यूक्रेन को सैन्य सहायता, सुरक्षा गारंटी और हथियारों की आपूर्ति की घोषणा की है। राष्ट्रपति ट्रंप इस नीति से नाखुश हैं और उन्होंने इसे अप्रत्यक्ष रूप से ‘अमेरिका विरोधी रुख’ बताया है। यही कारण है कि वह रूस से सटे देशों के सिक्योरिटी फंड में कटौती कर रहे हैं, ताकि वे अमेरिकी मदद पर कम निर्भर रहें।
ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के साथ ही अंतरराष्ट्रीय सहायता के सभी पहलुओं की समीक्षा करने का आदेश दिया था। उन्होंने एक कार्यकारी आदेश पर भी हस्ताक्षर किए थे, जिसके तहत अमेरिकी विदेश सहायता और सुरक्षा सहयोग को फिर से परिभाषित किया गया है। इसी आदेश के तहत सिक्योरिटी फंड में कटौती की प्रक्रिया शुरू हुई है।
हालांकि ट्रंप के इस कदम की आलोचना भी हो रही है। अमेरिकी सीनेट की डेमोक्रेट सीनेटर जीन शाहीन ने इसे ‘गुमराह करने वाला’ और अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय प्रभाव को कमजोर करने वाला फैसला बताया है। उनका कहना है कि इससे रूस को एक गलत संदेश जाएगा और यूरोपीय सहयोगियों में अमेरिका के प्रति विश्वास में कमी आएगी।
दूसरी ओर, यूरोपीय देशों ने ट्रंप की इस नीति के जवाब में यूक्रेन का समर्थन और मजबूत करने की प्रतिबद्धता जताई है। उन्होंने यूक्रेन की सेना को सशक्त करने और सुरक्षा गारंटी देने का वादा किया है। यह स्थिति अमेरिका और यूरोप के बीच कूटनीतिक खिंचाव को और गहरा कर सकती है।
कुल मिलाकर, ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति एक बार फिर वैश्विक राजनीति में बहस का विषय बन गई है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगियों के बीच संबंध किस दिशा में आगे बढ़ते हैं।