नई दिल्ली/इस्लामाबाद – भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद उपजे तनाव पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्र के नाम संबोधन ने जहां भारत की बदली हुई सैन्य नीति को स्पष्ट किया, वहीं पाकिस्तान की तरफ से अब तक के सबसे तीखे राजनीतिक और सैन्य प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। खासतौर पर पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ और आर्मी चीफ जनरल असीम मुनीर के बयानों ने यह संकेत दे दिया है कि इस टकराव के कूटनीतिक आयाम अब और गहराते जा रहे हैं।
पीएम मोदी का सख्त संदेश
सोमवार को पीएम नरेंद्र मोदी ने सीजफायर के 51 घंटे बाद राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा:
"जिन आतंकियों ने हमारी मां-बहनों का सिंदूर मिटाया, हमने उन्हें मिटा दिया। ऑपरेशन सिंदूर के तहत 100 से ज्यादा खूंखार आतंकवादी मारे गए हैं। पाकिस्तान की गुहार पर भारत ने संघर्ष रोकने पर अपनी सहमति दी है, लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं है।"
यह स्पष्ट कर दिया गया कि भारत अब केवल पीओके और आतंकवाद पर ही पाकिस्तान से बात करेगा और किसी तरह की "पुरानी नीति" को आगे नहीं बढ़ाएगा।
पाकिस्तान का पलटवार: ख्वाजा आसिफ की प्रतिक्रिया
पीएम मोदी के संबोधन के कुछ घंटों बाद ही पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का बयान सामने आया। उन्होंने तीन प्रमुख बिंदु उठाए:
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सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार
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बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में भारत की कथित गतिविधियों पर चर्चा
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कश्मीर मुद्दे पर बातचीत की जरूरत
आसिफ ने कहा:
"भारतीय प्रधानमंत्री सिर्फ अपनी इज्जत बचाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने एक नेता के तौर पर हताशा में प्रतिक्रिया दी है। मुझे नहीं लगता कि उनके बयान में कोई सार बचा है।"
यह बयान यह संकेत देता है कि पाकिस्तान अब आतंकवाद के मुद्दे को दरकिनार कर भारत पर प्रत्यारोप लगाने की रणनीति अपना रहा है।
पाक सेना प्रमुख का बयान: "छोटी सेना, बड़ी सेना पर भारी"
इससे भी तीखी प्रतिक्रिया आई पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर की ओर से। उन्होंने कुरान का हवाला देते हुए कहा:
"कुरान कहता है कि छोटी सेना भी बड़ी सेना पर भारी पड़ सकती है। इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं। हमारी सेना और जनता मिलकर स्टील की दीवार की तरह भारत के सामने खड़ी है।"
मुनीर का यह बयान केवल सैन्य ताकत का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह एक मनोवैज्ञानिक रणनीति भी है, जिसका मकसद पाकिस्तान की जनता को एकजुट करना और भारत को चुनौती देना है।
भारत का जवाब: केवल आतंकवाद पर होगी बात
पीएम मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए यह साफ कर दिया कि:
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भारत की सैन्य कार्रवाई स्थगित की गई है, समाप्त नहीं।
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हम पाकिस्तान के रवैये के आधार पर अगला कदम उठाएंगे।
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भारत अब केवल पीओके और आतंकवाद पर ही बात करेगा।
यह एक ऐतिहासिक बदलाव है। अब भारत "कश्मीर मुद्दे" को बातचीत का विषय मानने को तैयार नहीं है, बल्कि इसका समाधान सीधा है — आतंक का खात्मा और पीओके की वापसी।
सिंधु जल समझौता: नया तनाव बिंदु?
ख्वाजा आसिफ ने सिंधु जल संधि का उल्लेख कर एक नया मोर्चा खोलने की कोशिश की है। 1960 की इस संधि के तहत भारत और पाकिस्तान सिंधु नदी प्रणाली के पानी को साझा करते हैं। भारत पहले ही संकेत दे चुका है कि पाकिस्तान की लगातार आतंकी गतिविधियों के चलते इस समझौते की समीक्षा की जा सकती है।
आसिफ का यह बयान संकेत करता है कि पाकिस्तान को इस मोर्चे पर भारत की संभावित कार्रवाई का डर सता रहा है, और वह इसे बातचीत की मेज पर खींचकर रोकना चाहता है।
बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा का जिक्र: ध्यान भटकाने की रणनीति?
पाकिस्तान लंबे समय से भारत पर बलूचिस्तान और पख्तूनख्वा में अशांति फैलाने के आरोप लगाता रहा है, जबकि भारत इन आरोपों को सिरे से खारिज करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह पाकिस्तान की "ट्रांसफर ऑफ ब्लेम" रणनीति है — जिससे आतंकी संगठनों को मिल रही पाकिस्तान की शह से ध्यान हटाया जा सके।
राजनीति और सेना का टकराव या तालमेल?
पाकिस्तान में अक्सर सेना और राजनीतिक नेतृत्व में मतभेद सामने आते हैं, लेकिन इस बार ख्वाजा आसिफ और असीम मुनीर के बयान एक जैसी आक्रामकता दिखा रहे हैं। इससे लगता है कि इस मुद्दे पर इस्लामाबाद में सिविल-मिलिट्री तालमेल कायम है, और दोनों संस्थान भारत के खिलाफ एकजुट रणनीति अपनाए हुए हैं।
क्या सीजफायर स्थायी होगा?
पीएम मोदी के शब्दों में:
"हमने संघर्षविराम को स्वीकार किया है, लेकिन इसे स्थायी नहीं माना जा सकता। आगे की कार्रवाई पाकिस्तान के व्यवहार पर निर्भर करेगी।"
इससे स्पष्ट होता है कि भारत अब हर हमले का जवाब देगा और बातचीत तभी होगी जब पाकिस्तान आतंक के खिलाफ ठोस कदम उठाए।
निष्कर्ष: नए दौर की शुरुआत
ऑपरेशन सिंदूर, पीएम मोदी का कड़ा संदेश, पाकिस्तान के रक्षा मंत्री और सेना प्रमुख के तीखे बयान — इन सभी घटनाओं ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को एक निर्णायक मोड़ पर ला दिया है। जहां भारत आतंक के खिलाफ निर्णायक नीति पर चल रहा है, वहीं पाकिस्तान एक बार फिर ध्यान भटकाने, भावनात्मक अपील और बाहरी मध्यस्थता की रणनीति अपना रहा है।
बड़ा सवाल यही है — क्या यह तनाव अगले युद्ध की भूमिका बनेगा या कूटनीति एक बार फिर रास्ता निकाल लेगी?