लखनऊ न्यूज डेस्क: लखनऊ केजीएमयू के पोस्टमॉर्टम हाउस को लेकर नया विवाद सामने आया है। जिला अस्पतालों के चुनिंदा डॉक्टरों की बार-बार ड्यूटी लगाए जाने पर आपत्ति जताई गई है। डॉक्टरों का कहना है कि नियमों के मुताबिक पोस्टमॉर्टम में फरेंसिक विभाग के विशेषज्ञों को शामिल होना चाहिए, लेकिन वे उपलब्ध ही नहीं कराए जा रहे। उनकी दलील है कि जटिल मामलों में कोर्ट में जवाबदेही सिर्फ उन्हीं पर आ जाती है।
दरअसल, पोस्टमॉर्टम हाउस की बिल्डिंग और स्टाफ दोनों केजीएमयू का है। यहां फरेंसिक विभाग में पर्याप्त संख्या में विशेषज्ञ मौजूद हैं—27 जूनियर रेजिडेंट, 6 सीनियर रेजिडेंट और 6 प्रोफेसर। बावजूद इसके पोस्टमॉर्टम के लिए जिला अस्पतालों से डॉक्टर बुलाए जाते हैं। जबकि 2015 के शासनादेश में स्पष्ट है कि पोस्टमॉर्टम का जिम्मा नियमित नियुक्त फरेंसिक शिक्षकों पर होना चाहिए।
फरेंसिक विभाग का तर्क है कि शिक्षकों की कमी के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा। वहीं डॉक्टरों का आरोप है कि विभाग चाहकर भी नियम लागू नहीं कर रहा। उनका कहना है कि एमडी फरेंसिक की नियुक्तियां की जा सकती थीं, लेकिन जानबूझकर अनदेखी की जा रही है। इस मुद्दे पर सिविल अस्पताल के कई डॉक्टरों ने सीएमएस को पत्र लिखकर सबकी ड्यूटी रोटेशन में लगाने की मांग की है।
वर्तमान व्यवस्था के अनुसार, महीने में छह दिन सिविल अस्पताल, छह दिन बलरामपुर, चार दिन लोकबंधु, तीन-तीन दिन आरएलबी और आरएसएम अस्पताल के डॉक्टरों की ड्यूटी लगाई जाती है। बाकी दिन अन्य अस्पतालों से डॉक्टर बुलाए जाते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि जिले में करीब 350 डॉक्टर हैं, अगर सबकी बारी-बारी से ड्यूटी लगे तो किसी को साल भर में मुश्किल से दो दिन ही पोस्टमॉर्टम करना होगा।