लखनऊ न्यूज डेस्क: उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में सरयू (घाघरा) नदी पर बना संजय सेतु ब्रिज खतरे की घंटी बन चुका है। यह पुल राजधानी लखनऊ को गोंडा-बहराइच के रास्ते नेपाल से जोड़ता है, लेकिन उसकी हालत बेहद जर्जर हो चुकी है। हर दिन हजारों वाहन इस पुल से गुजरते हैं, बावजूद इसके इसकी मरम्मत या पुनर्निर्माण को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। जगह-जगह पड़े गड्ढे, कमजोर बैरिकेटिंग और अस्थायी पैबंद इसे एक असुरक्षित मार्ग में तब्दील कर चुके हैं।
बड़ी बात यह है कि यह सरयू नदी पर बना बाराबंकी का इकलौता पुल है, जिससे पूरे क्षेत्र के आवागमन की निर्भरता इसी पर है। जब भी इसकी हालत और बिगड़ती है, मरम्मत के नाम पर इसे अस्थायी रूप से बंद कर दिया जाता है, जिससे आम लोगों को बहुत परेशानी उठानी पड़ती है। ट्रैफिक जाम, लंबा इंतजार और समय की बर्बादी आम हो चुकी है। हर दिन इस पुल पर चलना लोगों के लिए मानो भगवान भरोसे हो गया है।
इसी तरह की एक और मार्मिक तस्वीर फतेहपुर जिले से सामने आई है, जहां रिंद नदी पर पुल न होने से ग्रामीण परेशान थे। जब नेताओं और अधिकारियों के आश्वासन सिर्फ वादे ही रह गए, तो गांव की महिलाएं कलावती और सीमा देवी के नेतृत्व में खुद बांस का अस्थायी पुल बनाने में जुट गईं। जब यह खबर अधिकारियों तक पहुंची, तो उन्होंने मौके पर पहुंचकर वह अस्थायी पुल हटा दिया और एक नए पुल निर्माण का वादा कर दिया।
यह सब घटनाएं गुजरात के वडोदरा में हाल ही में हुए महिसागर नदी पुल हादसे की याद दिलाती हैं, जिसमें एक पुल टूटने से दर्जनों लोगों की जान चली गई थी। तब भी अधिकारियों को पहले से इसकी खराब हालत की जानकारी दी गई थी, लेकिन कार्रवाई न होने की कीमत आम लोगों को जान देकर चुकानी पड़ी।