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कल्याण सिंह : सियासत की फर्श से अर्श तक का सफर

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Posted On:Monday, August 23, 2021

कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश की राजनीति का वह चेहरा थे जिन्होने भाजपा को एक नई दिशा देने में अहम योगदान दिया। हालांकि उनकी सत्ता टुकड़ों में ही रही लेकिन उनके द्वारा लिए गए फैसले आज भी नजीर बने हुए हैं।नकल अध्यादेश से लेकर गुंडों पर नकेल और एसटीफ गठन तक कल्याण सिंह की सरकार के ये वो फैसले थे जिनको आज भी याद किया जाता है।

कल्याण सिंह का सूत्र था, 'सत्ता धमक और  साहसी फैसलों से  चलती है। इससे सिस्टम कोलैप्स नहीं होता है। राजनेता का काम सिस्टम को बनाए रखना है।' बतौर मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने इसे साबित भी किया। 1991 से 99 के बीच टुकड़ों-टुकड़ों में मिली सत्ता के दौरान उनके फैसलों ने शासन के साथ ही सियासत में ऐसी इबारत लिखी जिससे असर आज भी साफ पढ़ा जा सकता है।

कल्याण सिंह अपने फैसलों की वजह से काफी चर्चा में रहे। उनकी सरकार में मंत्री रह चुके एक नेता कहते हैं कि निर्णयों को लेकर उनका नजरिया साफ था। एक बार एक जिले के एसपी ने कल्याण को फोन कर एक मसले में आ रही सिफारिश का जिक्र किया। कल्याण का जवाब था, 'अगर आप मेरिट पर फैसले नहीं कर सकते तो शाम तक जिले के चार्ज छोड़कर लखनऊ रिपोर्ट करिए।'

शुरुआत करते हैं उनके द्वारा लिए गए  कुछ फैसलों से :

नकल अध्यादेश : 
यह बात तब की है जब मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और उन्होंने यूपी बोर्ड की परीक्षा में स्वकेंद्र व्यवस्था लागू कर दी। यानी जहां, पढ़े वहीं, परीक्षा। इसने यूपी में नकल का पूरा उद्योग खड़ा कर दिया और पैदा हुई नकल माफियाओं की नई प्रजाति।
कल्याण सिंह सीएम बनने के बाद नकल रोकने के लिए सख्त कानून बना दिया।इसके प्रावधान इतने कड़े थे कि बोर्ड परीक्षा के दौरान बच्चों और उनके अभिभावकों की हथकड़ी लगी तस्वीरें आम होने लगीं। नकल एक गैर जमानती अपराध बन गया था।
उनके इस फैसले से  सिर्फ यूपी बोर्ड का रिजल्ट ही नही खराब हुआ उनके साथ साथ कई दिग्गज नेताओं का राजनीतिक रिजल्ट खराब हो गया।मोहान विधानसभा सीट से वे चुनाव हार गए और उनके विरोध में लड़ रहे सपा उम्मीदवार राजेंद्र यादव ने सबसे बड़ा मुद्दा नकल कानून की सख्ती को ही बनाया था। इसलिए, 1997 में जब कल्याण सिंह जब दोबारा सरकार में लौटे तो सख्ती तो जारी रहे लेकिन कानून के बहुत से अतिवादी पहलुओं को निकाल दिया।

गुंडों पर नकेल और एसटीएफ:

बताया जाता है कल्याण सिंह के कार्यकाल में सबसे बड़ा सिरदर्द अगर कोई था तो वह एक कुख्यात अपराधी श्री प्रकाश शुक्ला था जी हां यह वही अपराधी है । आम लोगों में ही बल्कि पुलिस भी उसके नाम का खौफ था।।  कहा जाता है इसने  तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को मारने के लिए 6 करोड़ की सुपारी भी ले थी।श्रीप्रकाश शुक्ला का आतंक खत्म करने के लिए यूपी पुलिस में स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) का गठन हुआ। इसके बाद प्रदेश में गुंडों और माफियाओं के एनकाउंटर का ऐसा दौर चला कि कई गिरोह साफ हो गए। कल्याण की खींची यह लकीर आज भी अपराधियों को मिटाने के काम आ रही है।

किसान जोत बही से क्षेत्रीय विकास तक
किसानों के पास उनकी खेती की जमीन का कोई सहज दस्तावेज नहीं होता था। हर बार जरूरत पड़ने पर उसे तहसील से कागज निकलवाने पड़ते थे। बैंक के पासबुक की तरह किसान जोत बही तैयार करने की योजना कल्याण सिंह ने लागू की। इसमें किसान का नाम, पता, तस्वीर उसके कृषि भूमि का विवरण होता था। ऐसे में किसानों की तहसील तक की अनावश्यक भागदौड़ बंद हो गई। पूर्वांचल व बुंदेलखंड के पिछड़ेपन को देखते हुए वहां विशेष योजनाओं के लिए पूर्वांचल विकास निधि और बुंदेलखंड विकास निधि की शुरुआत भी कल्याण सिंह की सरकार ने की थी।

जब विवादों में घिरे कल्याण सिंह

1991 में सीएम बनने के डेढ़ साल बाद ही  अयोध्या में राममंदिर के लिए कारसेवा का आंदोलन आक्रामक हो रहा था। दिसंबर 1992 में प्रस्तावित कार्यसेवा में अनहोनी की आशंकाएं सिर उठा रही थीं। सुप्रीम कोर्ट के कटघरे से लेकर राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठकों में शांति बहाली के कल्याण के वादों के बीच 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा ढहा दिया गया। कल्याण सिंह ने खुद इसकी जिम्मेदारी ली।सुप्रीम कोर्ट में अवमानना की सजा काटी। सार्वजनिक तौर पर स्वीकारा कि उनके साफ निर्देश थे कि संतों और कारसवेकों पर पुलिस गोली नहीं चलाएगी। कल्याण ने यह कहते हुए सीएम की कुर्सी छोड़ दी कि 'राम मंदिर के लिए एक क्या हजारों सत्ताएं कुर्बान'। इस घटनाक्रम ने यूपी के साथ ही पूरे देश की सियासत बदलकर रख दी। यहां से उपजे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के नए अध्याय का विस्तार अब तक जारी है।

कल्याण के लिए धरने पर बैठे अटल

21 विधायकों वाले लोकतांत्रिक कांग्रेस के चेहरे के तौर पर जगदंबिका पाल ने फरवरी 1998 में राज्यपाल रोमेश भंडारी से मिलकर कल्याण सरकार से समर्थन लेने का ऐलान कर दिया। अल्पमत का आधार बनाकर रोमेश भंडारी ने कल्याण सरकार को बहुमत साबित करने का मौका दिए बिना ही बर्खास्त कर दिया और रात में जगदंबिका पाल को शपथ दिला दी। सूबे की सियासत में भूचाल आ गया।

उस समय लोकसभा चुनाव चल रहे थे। अटल आनन-फानन में लखनऊ पहुंचे और अगले दिन भूख हड़ताल का ऐलान कर दिया। मामला कोर्ट तक पहुंचा और उसने जगदंबिका पाल के शपथ ग्रहण को अवैध ठहरा दिया और 24 घंटे में ही कल्याण सिंह की सरकार बहाल हो गई। हालांकि, कल्याण के इस दौर ने सियासत के बदलते चेहरे का भी रंग दिखाया।
बीजेपी के एजेंडे में कल्याण की अहमियत इससे समझी जा सकती है कि बेटे राजवीर सिंह के सांसद होने के बाद भी उन्हें (कल्याण सिंह) राजस्थान का राज्यपाल बनाया गया और 2017 में यूपी सरकार बनी तो पोते संदीप सिंह को राज्यमंत्री बना दिया गया। बीजेपी में यह इकलौता उदाहरण थे।


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