मुंबई, 27 जून, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। पुरी में शुक्रवार शाम 4 बजे भगवान जगन्नाथ की वार्षिक रथ यात्रा का शुभारंभ हुआ। परंपरा के अनुसार सबसे पहले भगवान बलभद्र के रथ को खींचा गया। इसके पश्चात देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ के रथों को श्रद्धालुओं ने खींचा। पहले दिन बलभद्र का रथ लगभग 200 मीटर की दूरी तक खींचा गया, जबकि सुभद्रा और जगन्नाथ के रथ भी थोड़ी दूरी तक ले जाए गए। रथ यात्रा के दौरान एक एंबुलेंस भीड़ में फंस गई, जिसे बाहर निकालने के लिए श्रद्धालुओं ने मिलकर एक ह्यूमन चेन बनाई और रास्ता खाली करवाया। सूर्यास्त के बाद धार्मिक परंपराओं के अनुसार रथ खींचना रोक दिया गया, इसलिए अब यह यात्रा शनिवार को दोबारा शुरू होगी। शनिवार को रथ यात्रा तीन किलोमीटर की दूरी तय कर गुंडीचा मंदिर पहुंचेगी। यहीं भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र अगले नौ दिनों तक प्रवास करेंगे। धार्मिक मान्यता के अनुसार गुंडीचा मंदिर को भगवान की मौसी का घर माना जाता है। इसके बाद 5 जुलाई को तीनों भगवान पुनः अपने मूल स्थान श्रीमंदिर में लौटेंगे। वहीं अहमदाबाद में भी रथ यात्रा का आयोजन पूरे उत्साह के साथ हो रहा है। यहां सुबह 4 बजे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगल आरती कर रथ यात्रा की शुरुआत की। इसके बाद गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने रथ यात्रा को रवाना किया। रथ यात्रा के रात करीब 9 बजे जगन्नाथ मंदिर पहुंचने की संभावना है।
क्यों निकलती है जगन्नाथ यात्रा -
जगन्नाथ रथ यात्रा हिन्दू धर्म की सबसे प्रमुख धार्मिक यात्राओं में से एक है, जिसका आयोजन हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को ओडिशा के पुरी शहर में होता है। यह यात्रा भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के रथों पर सवार होकर श्रीमंदिर से गुंडीचा मंदिर तक जाने की प्रक्रिया है। इस यात्रा का धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक तीनों स्तरों पर अत्यंत गहरा महत्व है।
रथ यात्रा का उद्देश्य:
भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए वर्ष में एक बार अपने मंदिर से बाहर निकलते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान भगवान स्वयं अपने भक्तों के बीच आते हैं, जो मंदिर तक नहीं पहुंच सकते। इसीलिए इसे "भगवान का लोक दर्शन" कहा जाता है। रथ यात्रा के जरिए भगवान की कृपा सब पर समान रूप से बरसती है – चाहे वह अमीर हो या गरीब।
पौराणिक मान्यता:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने एक बार अपनी बहन सुभद्रा के साथ मथुरा से द्वारका की यात्रा की थी। उसी घटना की स्मृति में यह यात्रा निकाली जाती है। एक अन्य मान्यता यह है कि भगवान अपनी मौसी के घर (गुंडीचा मंदिर) जाते हैं, जहां वे नौ दिन ठहरते हैं और फिर वापस श्रीमंदिर लौटते हैं।
आध्यात्मिक महत्व:
रथ यात्रा का प्रतीकात्मक अर्थ आत्मा की यात्रा से भी जुड़ा है। इसमें तीन रथ तीन गुणों (सत्त्व, रज और तम) को दर्शाते हैं, और भगवान की यात्रा इस संसारिक जीवन के बंधनों से मुक्ति की ओर एक प्रेरणा मानी जाती है।
सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व:
यह यात्रा समाज के सभी वर्गों को जोड़ती है। राजा से लेकर आम नागरिक तक रथ खींचने में भाग लेते हैं, जिससे यह सामाजिक समरसता और एकता का प्रतीक बन जाती है। रथ यात्रा के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम, भजन-कीर्तन और धार्मिक आयोजन भी होते हैं।
इस प्रकार, जगन्नाथ रथ यात्रा केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि आस्था, संस्कृति, सेवा और समर्पण का महान प्रतीक है, जिसमें श्रद्धालु पूरे तन, मन और आत्मा से जुड़ते हैं।