बांग्लादेश के राजनीतिक इतिहास में एक विशाल शून्यता पैदा करते हुए, देश की पहली महिला प्रधानमंत्री और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की अध्यक्ष बेगम खालिदा जिया का मंगलवार, 30 दिसंबर 2025 को निधन हो गया। ढाका के एवरकेयर अस्पताल में इलाज के दौरान सुबह करीब 6 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर से न केवल बांग्लादेश बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में शोक की लहर दौड़ गई है।
खालिदा जिया पिछले कई वर्षों से गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही थीं। 80 वर्ष की आयु में वह लीवर सिरोसिस, गठिया, मधुमेह और हृदय संबंधी जटिलताओं के कारण जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रही थीं। अस्पताल में 36 दिनों के सघन उपचार के बाद, अंततः 'देशनेत्री' ने इस संसार को विदा कह दिया।
राजनीतिक उदय: एक साहसी नेतृत्व
1945 में जलपाईगुड़ी में जन्मी खालिदा जिया का राजनीति में प्रवेश आकस्मिक और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में हुआ। 1981 में उनके पति और तत्कालीन राष्ट्रपति जियाउर रहमान की हत्या के बाद, जब उनकी पार्टी BNP बिखरने की कगार पर थी, तब खालिदा जिया ने घर की दहलीज लांघकर सक्रिय राजनीति की कमान संभाली।
उनकी राजनीतिक यात्रा उपलब्धियों से भरी रही:
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ऐतिहासिक खिताब: 1991 में वह बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। मुस्लिम जगत में वह बेनजीर भुट्टो के बाद यह गौरव प्राप्त करने वाली दूसरी महिला थीं।
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सत्ता का सफर: उन्होंने दो बार (1991-1996 और 2001-2006) देश की बागडोर संभाली।
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लोकतंत्र के लिए संघर्ष: 1980 के दशक में सैन्य तख्तापलट के बाद लोकतंत्र की बहाली के लिए उन्होंने जो कड़ा रुख अपनाया, उसने उन्हें जनता के बीच 'देशनेत्री' (राष्ट्र की नेता) के रूप में स्थापित किया।
'बैटल ऑफ बेगम्स': प्रतिद्वंद्विता का दौर
बांग्लादेश की राजनीति दशकों तक खालिदा जिया और शेख हसीना के इर्द-गिर्द घूमती रही। इस प्रतिद्वंद्विता को विश्व भर में 'बैटल ऑफ बेगम्स' के नाम से जाना गया। इस टकराव ने बांग्लादेश के सामाजिक और राजनीतिक ढांचे को गहराई से प्रभावित किया। जहाँ शेख हसीना की अवामी लीग और खालिदा की BNP के बीच विचारधारा का बड़ा अंतर था, वहीं दोनों नेताओं का जनाधार भी अत्यंत मजबूत था। 2024 के चुनाव बहिष्कार और हालिया राजनीतिक उथल-पुथल के बाद, आज BNP देश की सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी है।
विरासत और भविष्य की राह
खालिदा जिया का जीवन जीत, हार, जेल की सलाखों और बीमारी के बीच निरंतर संघर्ष की एक लंबी दास्तां रहा है। भ्रष्टाचार के आरोपों और कानूनी लड़ाइयों के बावजूद, उनके समर्थकों का उनके प्रति अटूट विश्वास कभी कम नहीं हुआ।
अब उनकी विरासत उनके बेटे और BNP के कार्यकारी अध्यक्ष तारिक रहमान के कंधों पर है। तारिक रहमान, जिन्हें बांग्लादेश का भावी प्रधानमंत्री माना जा रहा है, के सामने अब चुनौती अपनी मां के आदर्शों को आगे ले जाने और आगामी चुनावों में पार्टी को सफलता दिलाने की होगी।