मुंबई, 22 मई, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के बाद तीन प्रमुख मुद्दों पर अपना अंतरिम आदेश सुरक्षित रख लिया। इनमें वक्फ घोषित संपत्तियों को डिनोटिफाई करने, वक्फ बाय डीड और वक्फ बाय यूजर जैसे विषय शामिल हैं। सुनवाई लगातार तीन दिनों तक चली, जिसके बाद मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा। सुनवाई के दौरान CJI गवई ने कहा कि वक्फ की रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया 1923 और 1954 के पहले से ही प्रचलित रही है। याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि वक्फ की जांच शुरू होते ही उसकी स्थिति अस्थिर हो जाती है। उन्होंने कहा कि देश में दो सौ साल पुराने कई कब्रिस्तान हैं, जिन पर सरकार अब दावा कर सकती है और यह गलत होगा।
CJI ने पूछा कि जमीन का रजिस्ट्रेशन क्यों नहीं हुआ, जिस पर सिब्बल ने जवाब दिया कि यह राज्य की जिम्मेदारी थी। अब सरकार कहती है कि रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ, इसलिए संपत्ति वक्फ नहीं मानी जाएगी, तो यह समुदाय की गलती नहीं मानी जा सकती। उन्होंने यह भी कहा कि यदि सरकार के पास शक्ति है, तो उसे खुद की लापरवाही का लाभ नहीं उठाना चाहिए। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने वक्फ संशोधन कानून के सेक्शन 3E का हवाला दिया। उन्होंने बताया कि यह प्रावधान अनुसूचित क्षेत्रों की जमीन पर वक्फ निर्माण को रोकता है, ताकि आदिवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा की जा सके। उन्होंने कहा कि यदि किसी लेनदेन में धोखा होता है, तो जमीन वापस दी जा सकती है, लेकिन वक्फ में दान दी गई जमीन वापस नहीं ली जा सकती।
CJI गवई ने जब इसके पीछे की संवैधानिक सोच पूछी तो मेहता ने कहा कि वक्फ का निर्माण स्थायी होता है और इससे कमजोर आदिवासी समुदाय प्रभावित हो सकते हैं। संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के हवाले से उन्होंने कहा कि अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले मुस्लिम आदिवासियों की अलग सांस्कृतिक पहचान है। इस पर न्यायमूर्ति एजी मसीह ने सवाल उठाया कि इस्लाम तो एक ही धर्म है, उसे अलग-अलग सांस्कृतिक पहचान में कैसे बांटा जा सकता है। उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक प्रथाएं भिन्न हो सकती हैं, लेकिन धर्म एक ही होता है।
याचिकाकर्ता की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि सरकार कभी वक्फ को जमीन देती है तो कभी बिना न्यायिक प्रक्रिया के छीन लेती है। उन्होंने कहा कि कानून भगवान नहीं है और न ही कोई कानून वक्फ बाय यूजर को बना सकता है, बल्कि सिर्फ उसे मान्यता दे सकता है। कपिल सिब्बल ने आरोप लगाया कि सरकार ऐतिहासिक और संवैधानिक मूल्यों की अनदेखी कर रही है और गैर-न्यायिक तरीकों से वक्फ संपत्तियों को हथियाना चाहती है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम के खिलाफ पांच याचिकाओं पर सुनवाई जारी है। इन याचिकाओं में AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी की याचिका भी शामिल है। अदालत की पीठ में CJI बी.आर. गवई और जस्टिस एजी मसीह हैं, जबकि केंद्र की ओर से SG तुषार मेहता और याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और राजीव धवन बहस कर रहे हैं।